बच्चों को यौन अपराध से संरक्षण प्रदान करने वाले पोक्सो कानून में संशोधन करके इसमें सजा के कठोर प्रावधान करने के लिये संसद में विधेयक पर चर्चा हो रही है। देश की शीर्ष अदालत ऐसे अपराधों में तेजी से हो रही वृद्धि को लेकर चिंतित है। उसने पोक्सो कानून के तहत यौन अपराधों से संबंधित मुकदमों की तेजी से सुनवाई सनिश्चित करने के लिये केन्द्र को कई निर्देश दिये हैं। इसमें 60 दिन के भीतर उन जिलों में विशेष अदालत गठित करने का निर्देश भी शामिल है जहां इस तरह के सौ से अधिक मामले लंबित हैं। इस समय पोक्सो के तहत करीब एक लाख 60 हजार मुकदमे लंबित हैं। पोक्सो कानून बनने के बाद से इसके तहत दर्ज मुकदमों की सुनवाई के लिये विशेष अदालतों का गठन किया गया है लेकिन इनकी संख्या पर्याप्त नहीं है और इनमें अपेक्षित सुविधाओं का अभाव है। इन मुकदमों के तेजी से निपटारे के लिये विशेष अदालतों संख्या बढ़ाने की ही नहीं बल्कि पर्याप्त संख्या में ऐसे मामलों के प्रति संवेदनशील न्यायिक अधिकारियों, अभियोजकों और सहायक कर्मचारियों की भी आवश्यकता होगी सवाल यह है कि क्या केन्द्र 60 दिन के भीतर बच्चों से संबंधित अपराधों की सुनवाई के लिये सभी बुनियादी सुविधाओं से सुसज्जित अदालतें गठित कर पायेगा? इस संभावना को ध्यान में रखते हुए ही प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने केन्द्र से 30 दिन के भीतर इन निर्देशों के अमल पर प्रगति की रिपोर्ट भी मांगी है।पोक्सो कानून के तहत गठित विशेष अदालतों में यौन अपराध के शिकार बच्चों के अनुकूलन के लिये उचित माहौल उपलब्ध कराने तथा उन्हें आरोपी से रूबरू होने से बचाने के लिये विशेष व्यवस्था करने की आवश्यकता है। इस कानून की धारा 35, 36 और 37 में इस संबंध विस्तार से बताया गया है।इस कानून की धारा 35 के अनुसार विशेष अदालत द्वारा अपराध का संज्ञान लिये जाने के 30 दिन के भीतर यह अदालत पीड़ित बच्चे के साक्ष्य दर्ज करेगी और अगर इसमें देरी हुई तो उसे इसकी वजह का उल्लेख करना होगा। साथ ही विशेष अदालत को अपराध का संज्ञान लेने की तारीख से यथासंभव एक साल के भीतर ऐसे मुकदमे की सुनवाई पूरी करनी होगी कानून की धारा 36 में स्पष्ट प्रावधान है कि गवाही के समय यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चा आरोपी को नहीं देखे। बच्चे का बयान दर्ज करने के लिये विशेष अदालत वीडियो कानफ्रेंसिंग या एक ओर ही दिखाई पड़ने वाले शीशे या पर्दे या किसी अन्य तरीके का इस्तेमाल कर सकती है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे का बयान आरोपी साफ और स्पष्ट रूप से सुन सके।धारा 37 में प्रावधान है कि बच्चों के साथ हुए यौन अपराध से संबंधित मुकदमों की सुनवाई विशेष अदालत के बंद कमरे में पीड़ित बच्चे या किसी ऐसे व्यक्ति की मौजूदगी में होगी, जिसमें बच्चे का पूरा भरोसा हो। सरकार ने स्वीकार किया है कि इस कानून के तहत 31 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में करीब एक लाख 60 हजार मुकदमे लंबित हैं, जिनका दो साल के भीतर निपटारा कर दिया जायेगा शीर्ष अदालत को उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस साल की पहली छमाही के दौरान बच्चों के यौन शोषण के अपराध से संबंधित 24,212 प्राथमिकी दर्ज की गयी हैं। इनमें से 11,981 घटनाओं की जांच अभी भी जारी है और 12,231 मामलों में अदालत में आरोप पत्र दाखिल हो चुका है। इसी प्रकार, बच्चों के यौन शोषण से संबंधित 6,449 मामलों में अदालत में सुनवाई शुरू हो पायी है जबकि 4,871 मामलों में कोई प्रगति नहीं हुई है। निचली अदालत ने इस दौरान 911 मुकदमों में ही फैसला सुनाया है।हालांकि, सरकार ने संसद में दावा किया है कि इस साल 12.609 मामले दर्ज किये गये हैं। इनमें से 6.222 मामलों में आरोप पत्र दाखिल किये जा चके हैं। सरकार का यह भी कहना है कि कानन के तहत दर्ज 2.397 मामले दो महीने से कम समय में दर्ज हए हैं और इनकी जांच जारी है जबकि 3590 मामले तीन महीने से अधिक पराने हैं।न्यायालय जानता है कि यह राज्य का विषय है लेकिन इसके बावजद उसने केन्द्र को इन विशेष अदालतों की स्थापना, पोक्सो के तहत मुकदमों के लिये नियुक्त अभियोजकों को संवेदनशील बनाने के लिये उन्हें प्रशिक्षित करने तथा अदालतों में सहायक कार्मिक नियक्त करने के लिये पर्याप्त धन महैया कराने का निर्देश दिया है ।फारेन्सिक रिपोर्ट समय से उपलब्ध नहीं होना ऐसी समस्या है, जिसकी वजह से अदालत में चालान दाखिल करने में काफी देरी होती है। शीर्ष अदालत ने राज्यों के मख्य सचिवों को यह सनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि बच्चों के यौन शोषण के अपराध के मामलों में फारेन्सिक रिपोर्ट समय से उपलब्ध हो।
ताकि अपराधियों को शीघ्र सख्त सजा मिले