किसी समय रोम का राजा सीजर यहूदियों का उत्पीड़न कर रहा था। उस समय ईसा मसीह से पूछा गया था कि सीजर को टैक्स देना उचित है या नहा। इस पर इसा मसाह न जवाब दिया था कि 'जो सीजर का है वह उसको दो; और जो भगवान का है वह भगवान को।' उनके लिए सीजर द्वारा ढाए जा रहे अन्याय का महत्व कम था। उनका ध्यान जनता का साथ भगवान स जाड़न पर था। उन्होंने कहा था कि उसका साम्राज्य इस संसार का नहीं है। अर्थ हुआ कि ऐसे अपवादों पर हमें मौन रहना चाहिए और अपना ध्यान ईश्वर की तरफ लगाकर उस साम्राज्य की प्राप्ति करनी चाहिए। इस विचारधारा का एक विकृत रूप 'हार्वेस्टिंग आफ सोल्स' के विचारों में देखा जाता है। आरोप है कि यह धर्म गरीबी की अनदेखी करता है, जिससे लोग परेशान हों और उन्हें सीधे ईश्वर की ओर ले जाये जाने का उपक्रम किया जा सके हिन्दू धर्म में विशुद्ध भक्ति- योग की भी लगभग ऐसी ही मान्यता है। कहा जाता है कि सांसारिक प्रपंचों से अलग रहते हुए ईश्वर की भक्ति पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इस चिंतन से समाज में विसंगति की वृद्धि होती है। चूंकि अधर्म के विरुद्ध संघर्ष करना जरूरी नहीं रह जाता है। मान लिया जाता है कि राजा का व्यवहार ईश्वर प्रदत्त है। राजा के अन्याय से संघर्ष करने के स्थान पर अपने को घर में बंद करके भजन करना ही - - एक विचार ताकि उचित बताया गया है। इसी प्रकार चोरी करने पर निकलने के पहले चोर द्वारा मन्दिर में जाकर आशीर्वाद मांगा जाता है। जैसे गंगा पर बांध बनाकर उसके अस्तित्व को संकट में डालने वाले उद्यमी हिन्दू धर्म के महान समर्थक भी हैं। चैतन्य महाप्रभु जैसे भक्ति योग के प्रतिपादकों ने इसी चिंतन के चलते ब्रिटिश शासन का सीधे एवं प्रखर विरोध नहीं किया था काग्रेस द्वारा इसी चितन को लागू किया जा रहा था। कांग्रेस की मूल आर्थिक नीतियां गरीब विरोधी थीं। जैसे बहराष्टीय कम्पनियों को खदरा रिटेल में प्रवेश देकर छोटे व्यापारियों की जीविका छीनी जा रही थी। खनिज निकलने के लिए आदिवासियों को जंगल पर आधारित पारम्परिक जीविका से वंचित किया जा रहा था। टेक्सटाइल मिलों पर टैक्स न्यून करके हथकरघे के सम्पूर्ण उद्योग को चौपट किया गया था। गरीब और अमीर के द्वारा बाजार से खरीदी गई वस्तुओं पर एकल दर से एक्साइज ड्यूटी लगाई जा रही थी। हाइड्रोपावर के उत्पादन के लिए आम आदमी को बालू और मछली से वंचित किया जा रहा था। इसकी कांग्रेस अनदेखी कर रही थी, उसी तरह जैसे ईसा मसीह ने सीजर के अन्याय को नजरअंदाज किया था और चैतन्य महाप्रभु ने ब्रिटिश शासन का सीधे एवं प्रखर विरोध नहीं किया थाकांग्रेस की पॉलिसी का दूसरा - - - अपराधियों हिस्सा उसी गरीब को रोटी बांटने का था, जिस रोटी को आर्थिक नीतियां छीन रही थीं। मनरेगा, खाद्य सुरक्षा एवं किसानों की ऋण माफ़ी द्वारा किसान को राहत पहुंचाई जा रही थी, उसी तरह जैसे ईसा मसीह ने गरीबों को पनाह दी थी लेकिन यह राहत टिकाऊ नहीं थी। यह राहत तब तक ही दी जा सकती थी जब बड़ी कम्पनियों के द्वारा गरीबों की जीविका का भक्षण किया जाये, उनके द्वारा भारी लाभ कमाया जाये और सरकार के द्वारा उनसे टैक्स वसूला जाये। कांग्रेस की पॉलिसी का उसे अल्पकाल में लाभ मिला और 2004 और 2009 में कांग्रेस ने जीत हासिल की। परन्तु दीर्घकाल में कांग्रेस का चेहरा सामने आया है। हाल के चुनाव में कांग्रेस की हार और इससे उपजा कांग्रेस का वर्तमान संकट इसी का परिणाम है।भाजपा ने 1999-2004 के अपने प्रथम काल में भी कमोबेश कांग्रेस की ही पॉलिसी को लागू किया था। गरीब के लिए भाजपा के प्रोग्राम में कोई स्थान नहीं था। भाजपा का मानना था कि देश के समृद्ध होने से गरीब को लाभ स्वत-मिलेगा। अर्थशास्त्री इसे ट्रिकल डाउन थ्योरी कहते हैं। इस विचारधारा में आम आदमी के हितों पर सीधे विचार करने की जरूरत नहीं समझी जाती। भाजपा सरकार पर विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष हावी हो गये थे और आम आदमी को नजरंदाज करते हुए केवल समृद्धि को हासिल करने वह सरकार चल पड़ी। परिणाम यह हुआ कि सूचना, प्रौद्योगिकी क्रांति, परमाणु विस्फोट, स्वर्णिम चतुर्भुज हाईवे के माध्यम से देश समृद्ध हुआ। परन्तु आम आदमी की अनदेखी करने से कांग्रेस को छिद्र मिल गया और भाजपा की पराजय हुई देश को केन्द्र में आम आदमी को रखना होगा। ऐसी आर्थिक नीतियां बनानी होगी कि गरीबी जड़ से ही मिट जाये। भाजपा 1999 से 2004 एवं कांग्रेस 2004 से 2014 की तरह आम आदमी को गरीब बनाकर एवं उसे सस्ता अनाज बांटने से काम नहीं चलेगा। महाभारत में कहा गया है कि राजा की एक कमी ही उसकी पराजय का कारण बन जाती है। जैसे मश्क की एक सिलाई खली हो तो पानी नहीं टिकता है। एक आकलन में 1999 में भाजपा की जीत इसलिए हुई कि कांग्रेस के आर्थिक सुधारों के लागू होने के बाद कांग्रेस की मूल आर्थिक नीतियां जनविरोधी थीं और नरसिम्हा राव के कार्यकाल में कोई कल्याणकारी कदम नहीं उठाये गये थे। सुशासन भी नहीं दिखता था। बल्कि भ्रष्टाचार के कई आरोप थे। 1999 में भाजपा की मूल नीतियां जनविरोधी थीं। कल्याणकारी कार्य भी नहीं थे लेकिन सुशासन के आश्वासन पर भाजपा जीती थी। 2004 में कांग्रेस की मूल नीतियां जनविरोधी थीं लेकिन आम आदमी के कल्याण के विषय को उठाकर कांग्रेस ने भाजपा को मात दी थी। 2009 में इसी क्रम में मनरेगा और ऋा माफ़ी को लागू कर आम आदमी के कल्याण को आंशिक रूप से हासिल कर पुन: कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। 2014 के बाद भाजपा की मूल आर्थिक नीतियां जनविरोधी रही हैं। कल्याणकारी नीतियां भी अनुपलब्ध हैं।
सुशासन से कल्याण कर समाज धर्म निभाएं