रगों में घुलता जहर

राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान यानी नीरी की हालिया रिपोर्ट विचलित करती है, जिसमें यमुना नदी के किनारे उगने वाली सब्जियों में खतरनाक स्तर तक जहरीली धातुएं पायी गई हैं। इस दिशा में व्यापक जांच की जरूरत है क्योंकि इस पानी पर जीवित मवेशियों व मछलियों में भी कमोबेश यही घातक भारी धातुएं विद्यमान होंगी। सबसे ज्यादा फिक्र की बात यह है कि ये भारतीयों की खाद्य श्रृंखला का हिस्सा हैं। यमुना नदी के पानी के जहरीला होने की चर्चा आम होती रही है मगर किसी वैज्ञानिक संस्थान की जांच ने पहली बार इसकी पुष्टि की है। दरअसल, इस जांच का दायरा व्यापक किये जाने की जरूरत है जो यह भी बताता है कि यमुना के पानी को औद्योगिक इकाइयों के रासायनिक अपशिष्ट से बचाने की जिम्मेदारी जिन विभागों पर थी, वे दायित्वों के निर्वहन में चूके हैं। दिल्ली के तीन स्थानों से लिये गयेइन नमूनों में सीसा, निकल, कैडमियम और पारे जैसीघातक धातुओं की मात्रा निर्धारित सीमा से बहुत अधिक मात्रा में पायी गयी है। नीरी की अध्ययन रिपोर्ट में इन धातुओं की जो मात्रा सब्जियों में पायी गई, वह भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा निर्धारित धातुओं की मात्रा से कई गुना ज्यादा है जो हमारी सरकारों और समाज की चिंता का विषय होना चाहिए। दरअसल, नीरी ने गोभी, मूली, बैंगन, धनिया, मेथी व पालक आदि में ये घातक धातुएं पायी हैं। विडंबना यह है कि इन सब्जियों को स्वास्थ्यवर्धक मानकर चिकित्सक खूब खाने की सलाह देते हैं। इन घातक धातुओं वाली सब्जियों को खाने से सामान्य लोगों और रोगियों पर निश्चय ही हानिकारक प्रभाव पड़ेंगे। चिकित्सक बताते हैं कि हमारी खाद्य श्रृंखला में भारी धातुओं की मौजूदगी कुछ समय बाद हमारे शरीर की जैविक व जैव रासायनिक प्रक्रियाओं को बुरी तरह से प्रभावित कर सकती है जो कालांतर कैंसर का कारक भी बन सकती हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर यमुना के पानी में इन घातक धातुओं के स्रोत कहां से मिल रहे हैं। दरअसल, सरकारों की उदासीनता और स्थानीय निकायों द्वारा दूषित पानी के निकास की समुचित व्यवस्था का न कर पाना भी इस समस्या की मुख्य वजह रही है। जाहिर है, यमुना के किनारे स्थित ऑटोमोबाइल, बैटरी, पेंट, पॉलिथीन, कीटनाशक व सीसा प्रसंस्करण आदि इकाइयों के अवशिष्ट पदार्थ सीधे यमुना में गिराये जा रहे हैं, जिसको लेकर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण संबंधित विभागों को चेताता भीरहा है। एनजीटी द्वारा नियुक्त यमुना निगरानी समिति ने गाहे-बगाहे हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के गैर जिम्मेदार व्यवहार को लेकर सवाल भी उठाये हैं। इसकेअलावा हरियाणा शहरी विकास परिषद, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, स्थानीय निकाय व महानगर विकास प्राधिकरण अपने दायित्व के निर्वहन में चूके हैं। इनसंस्थानों ने अपशिष्ट शोधन संयंत्रों की जरूरत के मुताबिक स्थापना तथा उनके रखरखाव से जुड़ी जिम्मेदारियों का निर्वहन ठीक से नहीं किया। जिसके चलते औद्योगिक इकाइयों के अपशिष्ट पदार्थ बिना शोधन के ही यमुना नदी में बहा दिये जाते हैं, जिससे पानी लगातार जहरीलाहोता जा रहा है।